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विविध आलोचना -पद्धति के प्रवर्तक

👉शास्त्रीय आलोचना पद्धति के प्रवर्तक:-
महावीर प्रसाद द्विवेदी,
रामचन्द्र शुक्ल,
मिश्रबन्धु।

👉अकेडमिक या अध्यापकीय आलोचना पद्धति के प्रवर्तक:-
श्यामसुन्दर दास

👉शोधपरक समीक्षा का श्री गणेश हुआ-
नागरी प्रचारिणी पत्रिका से
👉शोध परक समीक्षा पद्धति का विकास करने वाले:-
बाबूश्यामसुन्दर दास
👉व्यावहारिक आलोचना पद्धति के जनक -बालकृष्ण भट्ट
👉कथा समीक्षा के क्षेत्र में प्रथम आलोचक-
नामवार सिंह

👉व्याख्यात्मक आलोचना का सू्त्रपात करने वाले -रामचन्द्र शुक्ल

👉व्याख्यात्मक आलोचना को आदर्श रुप प्रदान करने वाले-हजारी प्रसाद द्विवेदी

👉प्रभावात्मक आलोचना के सूत्रपात करता-पद्म सिंह शर्मा

👉मनोवैज्ञानिक आलोचना के क्षेत्र में सर्वाधिक समर्थक आलोचक-इलाचन्द्र जोशी

👉चिन्तन प्रधान आलोचना पद्धति के प्रवर्तक-रामचन्द्र शुक्ल

👉नोट :-
प्रभावात्मक आलोचना का सूत्रपाद पद्म सिंह शर्मा ने बिहारी सतसई की आलोचना से किया है।

जायसी,सूर,तुलसी की आलोचना से व्याख्यात्मक आलोचना का सूत्रपात हुआ।

तुलनात्मक आलोचना का सूत्रपात पदम सिंह शर्मा ने बिहारी और फारसी के कवि सादी की तुलना की है।

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बिहारी के विषय में महत्वपूर्ण कथन

ज न्म -1595 स्थान - ग्वालियर मृ त्यु,- 1663 जाति- माथूर चतुर्वेदी बिहारी सतसई का रचना काल -1662 भाषा - ब्रज छंद - दोहा 713 का०य स्वरूप - मुक्तक काव्य प्र मु ख रस - संयोग श्रृंगार रस विशेष :-                बिहारी रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं ।       यह आचार्यत्व न स्वीकार करने वाले कवि हैं। hindisahityarenu.blogspot.in हिन्दी में समास पद्धति की शाक्ति का सर्वाधिक परिचय बिहारी ने दिया है । बिहारी सतसई की प्रथम टीका लिखने वाले- कृष्ण कवि  बिहारी सतसई के दोहों का पलवन रोला छंद में करने वाले-अंबिकादत व्यास कृष्ण कवि ने बिहारी सतसई की टीका किस छंद में लिखी - सवैया छंद में बिहारी सतसई को शाक्कर की रोटी कहने वाले -पद्मसिंह शर्मा बिहारी के दोहों का संस्कृत में अनुवाद करने वाले- परमानन्द प२मानन्द ने बिहारी सतसई के दोहों का संस्कृत में किस नाम से अनुवाद किया - श्रृंगार सप्तशती बिहारी सतसई के प्रत्येक दोहें पर छंद बनाने वाले - कृष्ण कवि hindisahityarenu.blogspot.in बिहारी सतसई की रसिकों  के हृदय का घर कहने वाले -हजारी प्रसाद द्विवेदी बिहारी को हिन्दी का चौथ

प्रमुख समीक्षक नन्ददुलारे वाजपेयी

नन्ददुलारे वाजपेयी-1906-1967ई० 👉वाजपेयी जी की समीक्षा शैली व्याख्यात्मक और विवेचनात्मक है। 👉गणपति चन्द्र गुप्त ने इन्हें अपने युग का सजग समीक्षक  कहा है। 👉वाजपेयी जी किसी वाद में आस्था नही रखते थे । वे छायावादी ,स्वच्छंदतावादी ,सौष्ठववादी,समन्वयवादी ,रसवादी,अध्यात्मवादी समीक्षक कहे जा सकते हैं। 👉यह प्रथम छायावादी समीक्षक है।यह छायावादी-संवेदना दृष्टि के आलोचक है। 👉इनहोने छायावाद का सर्वप्रथम मानवीय और सांस्कृतिक प्रेरणा के रूप में विश्लेषण किया 👉इनकी समीक्षा-दृष्टि की महत्त्वपूर्ण विशेषता सौन्दर्यानुसंधान है। 👉दुलारे जी ने प्रेमचन्द को छोड़कर कोई स्वतन्त्र पुस्तक नही लिखी।इनकी पुस्तकें समय समय पर लिखें गए इनके निबंधों का संग्रह हैं। 👉ये श्यामसुन्दर दास से प्रभावित थे। 👉इन्होने लिखा है :-"मेरा आगमन हिन्दी के छायावादी कवि प्रसाद ,निराला,पंत की कविता के विवेचन के रूप में हुआ था। 👉जय शंकर प्रसाद इनके प्रिय कवि है। 👉इन्होंने प्रेमचन्द के आदर्शवाद की और सर्वप्रथम संकेत किया। 👉शुक्ल जी की सीमाओं को भी इन्होंने उद्घाटित किया है। 👉प्रसाद निराला और पंत पर 1931 में

हिन्दी रचनाओं में पहली बार बारहमासा वर्णन तथा कुछ अपभ्रंस रचना क्रम ट्रिक

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