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प्रमुख समीक्षक नन्ददुलारे वाजपेयी

नन्ददुलारे वाजपेयी-1906-1967ई०
👉वाजपेयी जी की समीक्षा शैली व्याख्यात्मक और विवेचनात्मक है।
👉गणपति चन्द्र गुप्त ने इन्हें अपने युग का सजग समीक्षक  कहा है।
👉वाजपेयी जी किसी वाद में आस्था नही रखते थे । वे छायावादी ,स्वच्छंदतावादी ,सौष्ठववादी,समन्वयवादी ,रसवादी,अध्यात्मवादी समीक्षक कहे जा सकते हैं।
👉यह प्रथम छायावादी समीक्षक है।यह छायावादी-संवेदना दृष्टि के आलोचक है।
👉इनहोने छायावाद का सर्वप्रथम मानवीय और सांस्कृतिक प्रेरणा के रूप में विश्लेषण किया
👉इनकी समीक्षा-दृष्टि की महत्त्वपूर्ण विशेषता
सौन्दर्यानुसंधान है।
👉दुलारे जी ने प्रेमचन्द को छोड़कर कोई स्वतन्त्र पुस्तक नही लिखी।इनकी पुस्तकें समय समय पर लिखें गए इनके निबंधों का संग्रह हैं।
👉ये श्यामसुन्दर दास से प्रभावित थे।
👉इन्होने लिखा है :-"मेरा आगमन हिन्दी के छायावादी कवि प्रसाद ,निराला,पंत की कविता के विवेचन के रूप में हुआ था।
👉जय शंकर प्रसाद इनके प्रिय कवि है।
👉इन्होंने प्रेमचन्द के आदर्शवाद की और सर्वप्रथम संकेत किया।
👉शुक्ल जी की सीमाओं को भी इन्होंने उद्घाटित किया है।
👉प्रसाद निराला और पंत पर 1931 में अलग अलग निबंध लिखे हैं।
👉छायावाद की वृहतत्रयी की घोषणा करने वाले नन्ददुलारे जी ही है।
👉दुलारे जी ने जय शंकर प्रसाद के काव्य में मानवीय भूमि, निराला के काव्य में बुद्धि तत्व तथा पंत के काव्य में कल्पना की प्रधानता स्वीकार की है।
👉इन्होने निराला की रचना कृति 'राम की शक्ति पूजा'और 'तुलसीदास ' को मार्मिकता और भाव-संवेदना की दृष्टि से 'बादल राग'और 'यमुना के प्रति' की तुलना में कमजोर माना है।
👉निराला की व्यंग्य रचनाओं में कुकुरमुत्ता को वाजपेयी जी सर्वश्रेष्ठ व्यंग्य रचना मानते है। एवं शैली की दृष्टि से इसे इलियट के ' वैस्टलेण्ड ' के समक्ष मानते है।
👉इन्होंने अपने निबंध 'छायावाद की प्रतिष्ठा के संघर्ष 'में शुक्ल जी को "हिन्दी समीक्षा का वालारुण" कहा है।
👉ये अज्ञेय के उपन्यास 'शेखर एक जीवनी 'को उपन्यास मानने में संकोच प्रकट करते है।
👉'उच्छवास 'और ' आंसू' को ये एक ही कविता के रूप में स्वीकार करते है।
👉इन्होंने 'आँसू' को "मानवीय विरह का काव्य "कहा है।
👉जय शंकर प्रसाद को"मनुष्यों के और मानवीय भावनाओं का कवि "कहा है।
👉प्रेमचन्द के आदर्शवाद पर असहमती दिखाई है।
👉'ग्रंथि 'को विशेष मार्मिक कविता मानते है।
👉पंत की 'परिवर्तन 'को इनन्होंने "दर्शन संवलित काव्य" कहा है।
👉इनका मानना है कि महादेवी वर्मा के काव्य में छायावाद युग की विशेषताएं नही मिलती । इन्होंने महादेवी पर लगाए गए अनुभुतियों की काल्पनिकता के आरोप का खंडन  किया है।
👉दुलारे जी पहले आलोचक है जिन्होने छायावाद को एक ओर नव जागरण की परम्परा
से जोड़कर देखा वहीं दूसरी ओर उसके ऐतिहासिक सामाजिक पृष्ठभूमि को भी उजागर किया।

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