अभिमान से संबंधित कथन:-
अभिमान एक व्यक्तिगत गुण है,उसे समाज के भिन्न भिन्न विषयों से जोड़ना ठीक नहीं।
मनोवेग वर्जित सदाचार दम्भ या झूठी कवायद ह।
अभिमान हर घड़ी बड़ाई की भावना भोगने का दुर्व्यसन है।
अभिमान एक व्यक्तिगत गुण है,उसे समाज के भिन्न भिन्न विषयों से जोड़ना ठीक नहीं।
मनोवेग वर्जित सदाचार दम्भ या झूठी कवायद ह।
अभिमान हर घड़ी बड़ाई की भावना भोगने का दुर्व्यसन है।
भय से सम्बंधित कथन:-
भय के लिए कारण का निर्दिष्ट होना जरूरी नही
भय जब स्भावगत हो जाता है , कायरता या भीरूता कहलाता ह्।
भय का फल भय के संचार काल तक ही रहता ह।
क्रोध दुःख के कारण पर प्रभाव डालने के लिए आकुल करता है और भय उसकी पंहुच से बाहर होने के लिए।
भय के लिए कारण का निर्दिष्ट होना जरूरी नही
भय जब स्भावगत हो जाता है , कायरता या भीरूता कहलाता ह्।
भय का फल भय के संचार काल तक ही रहता ह।
क्रोध दुःख के कारण पर प्रभाव डालने के लिए आकुल करता है और भय उसकी पंहुच से बाहर होने के लिए।
उत्साह के विषय में कथन:-
कर्म सौन्दर्य के उपासक ही सच्चे उत्साही कहलाते हैं।
दुःख वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थान आनन्द वर्ग में उत्साह का है।
उत्साह वास्तव में कर्म और फल की मिली -जुली अनुभूति है।
साहसपूर्ण आनन्द की उमंग का नाम उत्साह है।
कर्म सौन्दर्य के उपासक ही सच्चे उत्साही कहलाते हैं।
दुःख वर्ग में जो स्थान भय का है, वही स्थान आनन्द वर्ग में उत्साह का है।
उत्साह वास्तव में कर्म और फल की मिली -जुली अनुभूति है।
साहसपूर्ण आनन्द की उमंग का नाम उत्साह है।
घृणा से संबंधित कथन :-
घृणा के बदले में तो घृणा ,क्रोध या वैर होता है।
घृणा और भय की प्रवृति एक सी है।
वैर का आधार व्याक्तिगत होता है, घृणा का सार्वजनिक।
अपने बनाने और पालने वाले से बैर पालना कृतघ्नता ह्।
सभ्यता या शिष्टता के व्यवहार में घृणा उदासीनता के नाम से छिपाई जाती है।
घृणा के बदले में तो घृणा ,क्रोध या वैर होता है।
घृणा और भय की प्रवृति एक सी है।
वैर का आधार व्याक्तिगत होता है, घृणा का सार्वजनिक।
अपने बनाने और पालने वाले से बैर पालना कृतघ्नता ह्।
सभ्यता या शिष्टता के व्यवहार में घृणा उदासीनता के नाम से छिपाई जाती है।
ईर्ष्या से संबंधित कथन :-
ईर्ष्या अप्राप्त के प्रति ही होती है।
ईर्ष्या सामाजिक जीवन की कृत्रिमता से उत्पन्न एक विष है।
यह एक संकर भाव है ,जिसकी सम्प्राप्ति आलस्य,अभिमान ,और नैराश्य के योग से होती है।
ईर्ष्या की सबसे अच्छी दवा उद्योग और आशा है।
ईर्ष्या व्यक्तिगत होती है और स्पर्द्धा वस्तुगत है।
ईर्ष्या अत्यन्त लज्जावती वृत्ति है।उसके रूप आदि का पूरा परिचय न पाकर भी धारणकर्त्ता उसका हरम की बेगमों में अधिक परदा करता है।
प्रकृति के कानून में ईर्ष्या एक पाप या जुर्म है।
ईर्ष्या अप्राप्त के प्रति ही होती है।
ईर्ष्या सामाजिक जीवन की कृत्रिमता से उत्पन्न एक विष है।
यह एक संकर भाव है ,जिसकी सम्प्राप्ति आलस्य,अभिमान ,और नैराश्य के योग से होती है।
ईर्ष्या की सबसे अच्छी दवा उद्योग और आशा है।
ईर्ष्या व्यक्तिगत होती है और स्पर्द्धा वस्तुगत है।
ईर्ष्या अत्यन्त लज्जावती वृत्ति है।उसके रूप आदि का पूरा परिचय न पाकर भी धारणकर्त्ता उसका हरम की बेगमों में अधिक परदा करता है।
प्रकृति के कानून में ईर्ष्या एक पाप या जुर्म है।
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